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युग युग की साख
ले मन में बैराग ले
युग युग की साख ले मन में बैराग ले संतों
का मेला प्रयागराज
में युग युग की साख ले मन में बैराग ले
संतों का मेला प्रयागराज में धूड़ की आग
दान पुण्य त्याग ले संतों का मेला
प्रयागराज में ये महाकुंभ पर्व है महाकुंभ
पर्व है जिस प्रथा पे गर्व है प्र गर्व है
यह महाकुंभ पर्व है जिस प्रथा पर गर्व है
धर्म के पुजारियों को फिर बुला
रहा धर्म धवज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो ये
महाकुंभ फिर बुला
रहा धर्म धवज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो ये
महाकुंभ फिर बुला
रहा धर्म ध्वज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो
ये महाकुंभ फिर बुला रहा
धर्म को रखेगा उसे धर्म
रखेगा धर्म
रखेगा धर्म
रखेगा धर्म धारी मानवों का भर्म
रखेगा भर्म
रखेगा भर्म रखेगा
धर्म को रखेगा उसे धर्म
रखेगा धर्म धारी मानवों का फर्म
रखेगा गीता का सार ले धर्म का आधार ले
कर्म के पुजारियों का कर्म रखेगा मन पर
अंधेरा चढ़ ना ले तू मूल से उखड़ ना ले मन
पर अंधेरा चढ़ ना ले तू मूल से उखड़ ना ले
नदियों को सागर से फिर मिला
रहा धर्म ध्वज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो
ये महाकुंभ फिर बुला
रहा धर्म ध्वज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो
ये महाकुंभ फिर बुला
रहा धर्म ध्वज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो
ये महाकुंभ फिर बुला रहा
महाकुंभ धरा की आन रखे लोकन में पहचान रखे
विष पीकर शंकर सागर का देवों को अमृत दान
लखे धरती के लिए वरदान है ये संतों का
गौरव गान है ये सत्संग से कुंभ में देवरीज
इस हेतु पर्व महान है
ये महाकुंभ का हेतु विचार करो ऋषियों का
स्वप्न साकार करो च और जगत का मंग हो य
पापी का प्रतिकार करो जीवन में लाख जमले
है तीनों नदियों के मेले में प्रयाग में आ
स्नान करो मुक्ति पाऊ इस खेले
में मैंने कहा था ना कि बटो ग तो कटो
ग एक रहोगे तो नेक रहोगे योगी तेरे योग का
ऐसा प्रभाव है आप जैसा संत हो तो क्या
अभाव है योगी तेरे योग का ऐसा प्रभाव है
आप जैसा संत हो तो क्या अभाव है हो अ चुभ
ऐसा कुंभ ना कभी हुआ धर्म की गति का यह
महा पड़ाव है कोई जात पात ना बड़ी सब धर्म
ध्वज तले खड़ी कोई जात पात ना बड़ी सब
धर्म ध्वज तले खड़ी महाकुंभ सारे भेदभाव
को भ ला
रहा धर्म ध्वज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो
ये महाकुंभ फिर बुला
रहा धर्म धवज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो ये
महाकुंभ फिर बुला
रहा धर्म ध्वज हाथ लो हिंदुओं को साथ लो
ये महाकुंभ फिर बुला रहा
महाकुंभ केशोर से लोक जगे धरती अंबर परलोक
जगे धर्मी कर्मी सत्संग करे दुष्टि पाप धर
त्याग
भागे यह भारतवर्ष अखंड करे मेरे हाथों
ध्वज दंड धरे रघुवीर का बाण अमोग चले हर
रावण के दस मुंड
गिरे यह साधु संत बैराग मिले कहीं प्रण
पले कहीं त्याग मिले बरसों से जो संजोग
बने साम का बड़ भाग मिले गंगा यमुना नदी
तीन बहे सरस्वती पूप निवास करे अखिलेश
महेश दिनेश जहां वह तीर्थ राज प्रयाग कहे
अखिलेश महेश दिनेश जहां वह तीर्थ राज
प्रयाग कहे अखिलेश महेश दिनेश जहां व तीरथ
राज प्रयाग कहे
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